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Writer's picturePrasad Bharadwaj

अष्टावक्र गीता क 1-3. साक्षी चेतना: मुक्ति का सच्चा स्वरूप - सत-चित-आनंद। तुम उसी के रूप हो। (AshtaVakra Gita 1-3. Witness Consciousness: The True Nature of Liberation - Sat-Chit-Ananda. . . . )




🌹 अष्टावक्र गीता क 1-3. साक्षी चेतना: मुक्ति का सच्चा स्वरूप - सत-चित-आनंद। तुम उसी के रूप हो।🌹


✍️ प्रसाद भारद्वाज



अष्टावक्र गीता के पहले अध्याय में, तीसरा श्लोक साक्षी चेतना और भौतिक जगत के बीच अंतर को स्पष्ट करता है। यह श्लोक समझाता है कि सच्चा स्व visible पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु या आकाश नहीं है, बल्कि साक्षी चेतना है, जो सत-चित-आनंद (अस्तित्व, चेतना, आनंद) का स्वरूप है। इस सत्य को समझने से मुक्ति मिलती है, जो मन-शरीर के जटिल संरचना और भौतिक जगत द्वारा निर्मित भ्रांतियों को पार कर जाती है।



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