🌹 अष्टावक्र गीता पहला अध्याय - आत्मानुभवोपदेश - श्लोक 6 - यह पहचानो कि तुम ना कर्ता हो और ना ही भोगता हो। तुम सदा स्वतंत्र और मुक्त हो। 🌹
प्रसाद भारद्वाज
अष्टावक्र गीता के पहले अध्याय का 6वां श्लोक सिखाता है कि आत्मा ना कर्ता है और ना ही अनुभव करने वाला। यह श्लोक यह स्पष्ट करता है कि धर्म, अधर्म, सुख और दुःख जैसी भावनाएं मन से संबंधित होती हैं, लेकिन आत्मा इन सबसे परे, सदा स्वतंत्र और मुक्त रहती है। अष्टावक्र ऋषि राजा जनक को बताते हैं कि अहंकार ही कर्ता और भोगता होने का भ्रम उत्पन्न करता है, परंतु आत्मा इन द्वंद्वों से परे मुक्त होती है।
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