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अष्टावक्र गीता - प्रथम अध्याय - आत्मानुभवोपदेश - 5वां श्लोक - संग रहित हो, निराकार हो, सर्वसाक्षी हो तुम। विचार छोड़कर संतुष्ट होकर जीयो। (Ashtavakra Gita - 1st Chapter - The Teaching of Self- . . . )

  • Writer: Prasad Bharadwaj
    Prasad Bharadwaj
  • Sep 1, 2024
  • 1 min read


🌹 अष्टावक्र गीता - प्रथम अध्याय - आत्मानुभवोपदेश - 5वां श्लोक - संग रहित हो, निराकार हो, सर्वसाक्षी हो तुम। विचार छोड़कर संतुष्ट होकर जीयो। 🌹


✍️ प्रसाद भारद्वाज



इस वीडियो में अष्टावक्र गीता के पहले अध्याय के पांचवें श्लोक को प्रसाद भरद्वाज द्वारा गहराई से समझाया गया है। अष्टावक्र महर्षि आत्मा के वास्तविक स्वरूप का वर्णन करते हैं, जो किसी भी सामाजिक विभाजन, रूप, और इंद्रियों की सीमाओं से परे है। वे हमें बताते हैं कि हमें निर्लिप्त, निराकार, और विश्व के साक्षी के रूप में रहना चाहिए और आंतरिक आनंद के साथ जीना चाहिए। जानिए कि अपने असली स्वरूप को पहचानकर कैसे जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाई जा सकती है, जो मोक्ष की ओर ले जाती है।


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